RBI MPC Meeting क्यों हर दो महीने पर की जाती है! क्या है रेपो रेट जिसे बढ़ाया-घटाया जाता है?
RBI Monetary Policy: साल 2024 की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के आज नतीजे आने हैं. ये बैठक हर दो माह के अंतराल पर की जाती है. जानिए आखिर क्यों हर दो महीने पर आरबीआई की ये बैठक की जाती है और क्या है रेपो रेट जिसे बार-बार आरबीआई घटाता और बढ़ाता है?
RBI Monetary Policy: भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank Of India) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिवसीय बैठक का आज तीसरा दिन है. यानी आज आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास (RBI Governor Shaktikanta Das) समिति की बैठक में हुए फैसलों का ऐलान करेंगे. बता दें कि आरबीआई मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक हर दो महीने में होती है. साल 2024 की ये पहली बैठक है. इससे पहले ये दिसंबर में हुई थी. ऐसे में एक सवाल मन में आता है कि आखिर क्यों हर दो महीने पर आरबीआई की ये बैठक की जाती है और क्या है रेपो रेट जिसे बार-बार आरबीआई घटाता और बढ़ाता है? आपके भी दिमाग में है ये सवाल तो जानिए जवाब.
जानिए क्यों हर दो महीने में होती है RBI MPC Meeting
दरअसल देश में बढ़ती महंगाई और अचानक से मार्केट में कम होती समान की मांग के बीच बैलेंस बनाए रखने के लिए रिजर्व बैंक को समय-समय पर बैठक करनी होती है. ऐसे में आरबीआई की छह सदस्यीय टीम मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के जरिए महंगाई के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नीतिगत रेपो रेट में बदलाव को लेकर चर्चा करती है. तीन दिनों तक ये बैठक चलती है और तीसरे दिन आरबीआई गवर्नर मीटिंग में हुए फैसले की घोषणा कर देते हैं. नियम के मुताबिक RBI MPC Meeting साल में कम से कम चार बार करना जरूरी है. ये मौद्रिक नीति बैठक कितने-कितने समय के अंतराल पर होगी, इस अवधि को तय करने का जिम्मा समिति पर होता है.
समिति के पास बैठक को जरूरत के अनुसार बढ़ाने-घटाने का भी अधिकार होता है. अगर समिति को लगता है कि ये बैठक साल में 4 बार से ज्यादा होनी चाहिए तो इसको लेकर एक नोटिफिकेशन जारी कर दिया जाता है. पिछली बार जब नोटिफिकेशन जारी हुआ था तो उसमेंं कहा गया था कि 2023-24 के लिए मौद्रिक नीति समिति की बैठक 6 बार की जाएगी जो अप्रैल, जून, अगस्त, अक्टूबर, दिसंबर और फरवरी महीने में होगी. आज वित्त वर्ष 2023-24 के लिए एमपीसी की छठी द्विमासिक बैठक के नतीजे आने वाले हैं.
क्यों समय-समय पर किया जाता है रेपो रेट में बदलाव
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रेपो रेट महंगाई से लड़ने का शक्तिशाली टूल है, जिसका समय समय पर आरबीआई स्थिति के हिसाब से इस्तेमाल करता है. जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो आरबीआई इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है और रेपो रेट को बढ़ा देता है. आमतौर पर 0.50 या इससे कम की बढ़ोतरी की जाती है.
लेकिन जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है और ऐसे में RBI रेपो रेट कम कर देता है और जरूरत नहीं लगती तो रेपो रेट को कुछ समय तक स्थिर रखता है.
आज के नतीजों को लेकर अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार भी सेंट्रल बैंक की ओर से लगातार रेट को 6.50% पर ही स्थिर ही रखा जाएगा. अगर ऐसा होता है तो रेपो रेट 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रहने का पूरा एक वर्ष पूरा हो जाएगा. हालांकि इस जो भी फैसला है, वो कुछ समय में सामने आ जाएगा.
08:06 AM IST